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- Today Is Friendship Day Lessons From Friends Of Scriptures, Life Management Tips About Friendship Day, Krishna And Sudama, Krishna And Draupadi, Duryodhan
6 मिनट पहले
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आज (3 अगस्त) फ्रेंडशिप डे है। हर साल अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। मित्रता ही एकमात्र ऐसा संबंध है, जिसे हम अपनी पसंद-नापसंद से चुनते हैं। माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार हमारे साथ जन्म से जुड़े होते हैं, लेकिन मित्र वह होता है, जिसे हम स्वयं चुनते हैं, इसलिए मित्रों के चयन में बहुत सावधानी रखनी चाहिए। शास्त्रों में कई ऐसे मित्र बताए गए हैं, जिनसे जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र सीख सकते हैं…

कर्ण और दुर्योधन – वफादारी बनाम विवेक
महाभारत में कर्ण और दुर्योधन की मित्रता थी। कर्ण एक सूतपुत्र था, जिसे समाज में सम्मान नहीं मिलता था। दुर्योधन ने न केवल उसे अपनाया, बल्कि उसे अंगदेश का राजा बनाकर समाज में प्रतिष्ठा दिलवाई। बदले में कर्ण ने दुर्योधन के प्रति आजीवन वफादारी निभाई। यहां तक कि जब वह जानता था कि युद्ध अन्यायपूर्ण है, दुर्योधन अधर्म कर रहा है, फिर भी वह दुर्योधन के साथ रहा और पांडवों के विरुद्ध युद्ध लड़ा।
सीख:
- सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र को गलत राह पर जाने से रोके।
- कर्ण धर्म-अधर्म की समझ रखता था, लेकिन उसने कभी भी दुर्योधन को गलत काम करने से रोका नहीं और इस चूक के कारण उसे भी महाभारत युद्ध में अपने प्राण गंवाने पड़े।
- मित्रता अंध समर्थन नहीं है, बल्कि विवेक के साथ निभाई गई मित्रता ही सार्थक होती है। जब मित्र कोई गलत निर्णय ले रहा हो, तो केवल दोस्ती निभाने के नाम पर चुप न रहें।
- सही समय पर साहसपूर्वक सच बोलना भी मित्रता का हिस्सा है। नैतिक दृष्टिकोण बनाए रखें, भले ही दोस्त नाराज़ हो जाए।

श्रीकृष्ण और सुदामा – प्रेम, विनम्रता और निःस्वार्थ सेवा
श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता सांदीपनि आश्रम में शुरू हुई थी, उस समय श्रीकृष्ण और बलराम उज्जैन स्थित सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वर्षों बाद जब सुदामा निर्धनता में जी रहे थे, तब उनकी पत्नी ने उन्हें श्रीकृष्ण से सहायता मांगने भेजा। द्वारका पहुंचने पर श्रीकृष्ण ने उनका स्वागत किया, उन्हें गले लगाया और उनके पैर धोए। सुदामा ने उपहार के रूप में सादा पोहा (चिउड़ा) भेंट किया, जिसे कृष्ण ने अत्यंत प्रेम से ग्रहण किया। बिना किसी मांग के श्रीकृष्ण ने उनके जीवन की सभी समस्याएं समाप्त कर दीं।
सीख:
- सच्ची मित्रता स्थिति या हैसियत पर आधारित नहीं होती, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव पर आधारित होती है।
- मित्र के उपकारों को नहीं भूलना चाहिए, चाहे वे कितने भी छोटे क्यों न हों।
- निःस्वार्थ भाव से सहायता करना ही मित्रता का सच्चा रूप है।
- पुराने मित्रों से जुड़ाव बनाए रखें, भले ही समय या परिस्थितियां बदल गई हों। मदद करने से पहले यह न सोचें कि बदले में क्या मिलेगा।

श्रीराम और सुग्रीव – वचन, कर्तव्य और समय पर सहयोग
रामायण में, हनुमान की वजह से श्रीराम और सुग्रीव की भेंट होती है। दोनों ने एक-दूसरे की सहायता करने का वचन दिया। श्रीराम ने बाली को मारकर सुग्रीव को उसका खोया राज्य दिलवाया। सुग्रीव ने सीता की खोज और लंका युद्ध में श्रीराम की पूरी सहायता की। हालांकि, राज्य प्राप्त करने के बाद सुग्रीव अपने वचन को भूल गए, तब लक्ष्मण ने उन्हें चेताया और उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ।
सीख:
- मित्रता में अपना कर्तव्य निभाना अत्यंत आवश्यक है। अगर आपने किसी मित्र से सहयोग का वादा किया है, तो उसे समय पर निभाएं।
- सफलता मिलने के बाद मित्रों को भूल जाना सबसे बड़ी चूक है।
- किसी मित्र ने आपके लिए कुछ किया है तो उस ऋण को स्वीकारें और समय आने पर अपना कर्तव्य निभाएं।
- मित्रता सिर्फ सुख के समय नहीं, संकट में निभाई जाती है।
- अपने अहं को त्यागकर पुराने मित्रों की कद्र करें।

श्रीकृष्ण और द्रौपदी – उपकार और रक्षा का आदर्श
महाभारत में श्रीकृष्ण और द्रौपदी का रिश्ता सखा-सखी का था। शिशुपाल के वध के समय जब श्रीकृष्ण की उंगली कट गई तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया था। बाद में जब द्रौपदी का चीरहरण सभा में हो रहा था, तब श्रीकृष्ण ने उसी टुकड़े के उपकार का ऋण चुकाते हुए उनकी लाज बचाई।
सीख:
- मित्र के छोटे से उपकार को भी नहीं भूलना चाहिए।
- संकट के समय मित्र की रक्षा करना सच्चे मित्र का कर्तव्य है।
- मित्रता केवल संवाद नहीं, कर्म में दिखनी चाहिए। जब मित्र पर विपत्ति हो, तब आपके शब्द नहीं, कार्य बोलने चाहिए।
- छोटी-छोटी भावनात्मक बातों को याद रखें, वही मित्रता को गहराई देती है।
- भरोसे को विश्वास में बदलना ही सच्ची मित्रता है।
जीवन प्रबंधन की दृष्टि से मित्रता के सूत्र:
- विश्वास, ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखें। झूठ बोलने और रहस्य बनाए रखने से बचें।
- अपने कर्तव्य निभाएं। समय पर सहायता करें। वचन न भूलें।
- मित्रता में अपनी मर्यादाओं को समझें। मित्रता के नाम पर अनुचित अपेक्षाएं न रखें और मित्र का अनुचित लाभ न उठाएं।
- विवेक बनाए रखें। मित्र को गलत निर्णयों लेने से रोकें। कभी भी मित्र के गलत कामों में अंध समर्थन न दें।
- निष्ठा बनाए रखें। मित्र की गरिमा बनाए रखें, पीठ पीछे आलोचना न करें।
- शास्त्रों में बताए गए मित्रों की कहानियां हमें जीवन प्रबंधन की सीख भी देती हैं। इन कथाओं में कर्म, विवेक, भावनात्मक समझ, समर्पण, त्याग और साहस बनाए रखने का संदेश है। इन्हें सूत्रों को जीवन में उतारने से हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं।