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मुंबई4 मिनट पहले
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राज ठाकरे 2005 में शिवसेना से अलग हुए और अगले साल 2006 में अपनी पार्टी MNS बना ली।
करीब 20 साल बाद आज उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक मंच पर होंगे। दोनों नेता मुंबई के वर्ली में NSCI डोम में होने वाले विजय रैली में शामिल होंगे। यह कार्यक्रम महाराष्ट्र सरकार के थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी को वापस लेने के फैसले की जीत के रूप में हो रहा है।
दोनों चचेरे भाई आखिरी बार 2005 में मालवण उपचुनाव के दौरान एक मंच पर साथ देखे गए थे। उसके बाद 2005 में राज ठाकरे शिवसेना से अलग हुए और अगले साल 2006 में अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बना ली।
मुंबई महानगर पालिका (BMC) चुनाव से पहले उद्धव-राज ठाकरे का एकसाथ आना सियासी मायनों में खास माना जा रहा है। 2024 विधानसभा चुनाव में शिवसेना (UBT) ने 20 सीटें जीतीं, जबकि MNS का खाता तक नहीं खुला था।
महाराष्ट्र सरकार ने 29 जून को तीन भाषा नीति से जुड़े अपने 16 और 17 अप्रैल को जारी दो आदेश (GR) रद्द कर दिए थे। सरकार के इस आदेश के खिलाफ विपक्ष लगातार विरोध कर रहा था। इसके तहत सरकार ने कक्षा 1 से 5वीं तक तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने का आदेश जारी किया था।

मुंबई में होने वाली विजय रैली का न्योता, जिसमें राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों का नाम है।
शरद पवार और कांग्रेस नेता रैली में शामिल नहीं होंगे मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, NCP (SP) चीफ शरद पवार और महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन विजयी रैली में शामिल नहीं होंगे। शिवसेना (UBT) की सहयोगी कांग्रेस शुरुआत से ही थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी के विरोध में हैं।
शरद पवार ने शुक्रवार को पुणे में बताया कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के चलते रैली में शामिल नहीं होंगे। हालांकि उनकी पार्टी से सुप्रिया सुले या जितेंद्र आव्हाड उपस्थित रहेंगे।
महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1-5वीं तक हिंदी को तीसरी लैंग्वेज बनाया था

दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने इसी साल 16 अप्रैल में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बना दिया था। कक्षा 1 से 5वीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट्स तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी के अलावा भी दूसरी भारतीय भाषाएं चुन सकते हैं। विरोध के बाद 17 जून को संशोधित आदेश जारी किया था, जिसमें हिंदी को ऑप्शनल बनाया गया।
सरकार के आदेश वापस लेने के फैसले पर उद्धव-राज ने क्या कहा…
MNS चीफ राज ठाकरे: कक्षा 1 से तीन भाषाएं पढ़ाने के नाम पर हिंदी भाषा थोपने का निर्णय हमेशा के लिए वापस ले लिया गया। सरकार हिंदी भाषा पर इतनी जोर क्यों दे रही थी और इसके लिए सरकार पर वास्तव में दबाव कहां था, यह अभी भी एक रहस्य है। सरकार ने नई समिति बनाई है, लेकिन मैं साफ शब्दों में कह रहा हूं कि समिति की रिपोर्ट आए या न आए, ऐसी बातें दोबारा बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।
शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे: मराठी लोग अच्छी हिंदी समझते और बोलते हैं, तो हिंदी थोपने की क्या जरूरत है? हम तीन भाषा नीति का समर्थन नहीं करते और इसका विरोध करेंगे। महायुति सरकार का फैसला राज्य में ‘लैंग्वेज इमरजेंसी’ घोषित करने जैसा है। उनकी पार्टी हिंदी के भाषा के रूप में विरोध नहीं करती, लेकिन महाराष्ट्र में इसे थोपने के खिलाफ है।
महाराष्ट्र में भाषा विवाद क्या है, 4 पॉइंट
- महाराष्ट्र में अप्रैल में 1 से 5वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी अनिवार्य की गई थी। ये फैसला राज्य के सभी मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों पर लागू किया गया था।
- नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के नए करिकुलम को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र में इन क्लासेज के लिए तीन भाषा की पॉलिसी लागू की गई थी।
- विवाद बढ़ने के बाद अपडेटेड गाइडलाइंस जारी की गई। मराठी और अंग्रेजी मीडियम में कक्षा 1 से 5वीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट्स तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी के अलावा भी दूसरी भारतीय भाषाएं चुन सकते हैं।
- इसके लिए शर्त बस यह होगी कि एक क्लास के कम से कम 20 स्टूडेंट्स हिंदी से इतर दूसरी भाषा को चुनें। ऐसी स्थिति में स्कूल में दूसरी भाषा की टीचर भी अपॉइंट कराई जाएगी। अगर दूसरी भाषा चुनने वाले स्टूडेंट्स का नंबर 20 से कम है तो वह भाषा ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई जाएगी।

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