"ॐ शं शनैश्चराय नमः"

“ॐ शं शनैश्चराय नमः” का अर्थ है “ओम, शांति को, शनिश्चराय (शनि देवता) को, नमः (नमस्कार)।” इस वैदिक मंत्र का जाप शनि देवता की कृपा और शुभाशीष प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस मंत्र के जाप से शनिदेव के अशुभ प्रभाव दूर हो जाते है ।

शनि बीज मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

Exploring the Divine Attributes of Lord Shani Dev in Hindu Beliefs

शनिदेव, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जिन्हें शनिश्चर भी कहा जाता है। उन्हें कर्मफल के देवता माना जाता है, और उनका प्रभाव व्यक्ति के कर्मों के अनुसार होता है। शनिदेव को ज्यादातर नीले या काले कपड़ों में दिखाया जाता है और वे काले घोड़े या काले कौवे पर सवारी करते हैं। उनके हाथ में गदा, त्रिशूल और कमल का फूल होता है। शनिदेव का संबंध शनि ग्रह से है, जिसे अंग्रेजी में सैटर्न कहते हैं। उन्हें सूर्यदेव और छाया (संवर्णा) का पुत्र माना जाता है।

मत्स्य पुराण के ग्यारवें अध्याय में सूर्यवंश परम्परा का वर्णन करते हुए सूतजी जो कथा ऋषियों बतलाई थी, वही कथा यहां दी जा रही है I इस कथा में शनि की उत्पति के कुछ पुष्ट संकेत मिलते है I
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Discover the teachings and stories of Lord Shanidev, the Hindu deity of justice, known for his blue skin and profound wisdom. Join us in exploring his divine influence.

 

Impact of Shani Sade Sati

प्रत्येक राशि के लिए शनि का प्रभाव अलग-अलग होता है, और यह प्रभाव न केवल व्यक्ति के जीवन में बल्कि उसके व्यक्तित्व में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस अनुभाग में, हम सभी १२ राशियों पर शनि के प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

मेष राशि के लिए शनि का प्रभाव संजीवनी शक्ति देने वाला होता है। यह व्यक्ति को कठोर मेहनत और अनुशासन को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इस राशि के लोग अपनी लम्बी अवधि की मेहनत से सफलता प्राप्त करते हैं। वृष राशि में शनि आर्थिक स्थिरता लाता है, लेकिन कभी-कभी यह अत्यधिक खर्च के कारण तनाव भी पैदा कर सकता है।

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धार्मिक पुस्तकें (पीडीऍफ़)

रत्न वे प्राकृतिक खनिज होते हैं, जो अपनी सुंदरता, रंग, और विशेष गुणों के लिए मूल्यवान होते हैं। ये खनिज पृथ्वी के अंदर गहराई में बनते हैं, और उनकी उत्पत्ति विभिन्न भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से होती है। रत्नों में अनगिनत विविधताएं होती हैं, जैसे कि आकार, रंग, और संरचना, जो उन्हें अन्य खनिजों से अलग बनाते हैं। कुछ रत्न, जैसे कि हीरा, सफेद संगमर्मर, और पुखराज, न केवल आभूषण में बल्कि चिकित्सा और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्व रखते हैं। 

आभूषण के रूप में रत्नों का उपयोग सदियों से किया जा रहा है। ये विभिन्न प्रकार के आभूषणों में जड़े जाते हैं, जैसे कि अंगूठी, हार, कंगन, और झुमके। रत्नों की भव्यता और अद्वितीयता उन्हें विशेष अवसरों के लिए पहली पसंद बनाती है। इसके अलावा, कुछ संस्कृतियों में रत्नों का उपयोग इसे पहनने वाले के लिए ज्ञान, शक्ति और स्वास्थ्य को आकर्षित करने के लिए भी किया जाता है। अनेक लोग मानते हैं कि रत्नों के विशिष्ट गुण होने के कारण, ये मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

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चालीसा संग्रह (वीडियो)

शनिदेव की पूजा-अर्चना मंत्र

  • शनिदेव जी का गायत्री मंत्र

ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात्  । ॐ शनैश्चराय नमः। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ।

  • शनि का वैदिक मंत्र

 ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः

  • ध्यान मंत्रा :
    ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम ।
    छायामार्तण्ड संम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम ।
  • || दशरथ कृत शनि स्तोत्र ||

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥१॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥२॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते॥३॥

नमो घोणतुण्डाय दीर्घग्रीवाय नमोऽस्तु ते। नम: किरीटिने देव दण्डाय च नमो नम:॥४॥

नमो मन्दगते तुभ्यं नम: शौरये नमोऽस्तु ते। नम: कल्याणरूपायकृष्णाय च नमो नम:॥५॥

नमोऽस्तु तेजसां पुंज नमोऽस्त्वन्धकारिणे। नमो यमसखायाथ मन्दाय च नमो नम:॥६॥

प्रसादं कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत:। एकश्लोकी यदा स्तोत्रं स नरो य: पठेत्तु स:॥७॥

दुःखानि नाशमायान्ति सुखसम्पत्ति च जायते। एकविंशतिसाहस्त्र य: पठेत्सततं नर:॥८॥

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