Javed Akhtar agrees with the ban on Pakistani artists | पाकिस्तानी कलाकारों के बैन से सहमत जावेद अख्तर: कहा- ये एकतरफा काम कब तक चलेगा, आज तक पाकिस्तान में लता मंगेशकर की एक परफॉर्मेंस तक नहीं हुई


4 घंटे पहले

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जावेद अख्तर ने हाल ही में पाकिस्तानी कलाकारों पर लगे बैन पर साफ कहा है कि जो कुछ भी मौजूदा समय में हुआ उसके बाद ये सवाल ही नहीं किए जाने चाहिए कि क्या उन्हें बैन करना ठीक है या नहीं। क्योंकि अब पाकिस्तान के लिए फ्रैंडली फीलिंग पूरी तरह खत्म हो चुकी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने का मौका देना पूरी तरह से एकतरफा है क्योंकि पाकिस्तान में आज तक लता मंगेशकर की एक परफॉर्मेंस तक नहीं होने दी गई है। उन्होंने इस एकतरफा काम करने के तरीके का पूरी तरह खंडन किया है।

जावेद अख्तर ने हाल ही में पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा है, ‘सवाल ये होना चाहिए कि क्या हमें पाकिस्तानी कलाकारों को यहां काम करने देना चाहिए। इसके दो जवाब हैं और दोनों ही लॉजिकल हैं। ये हमेशा से एकतरफा बात रही है। नुसरत फतेह अली खान भारत आए, मेहंदी हसन भारत आए, गुलाम अली भारत आए, नूर जहां भारत आईं। वो ग्रेट परफॉर्मर थे। फैज अहमद फैज भी आए, वो सबकॉन्टिनेंट पोएट थे। मैं उन्हें पाकिस्तानी पोएट नहीं कहूंगा। वो पाकिस्तान में रहते थे, क्योंकि वो वहां पैदा हुए थे, लेकिन वो प्यार और शांति के पोएट थे। जब अटल बिहारी बाजपेयी प्राइम मिनिस्टर थे, तब वो भारत आए थे, तब उन्हें स्टेट हेड जैसा सम्मान दिया गया था। यहां तक कि सरकार ने भी उन्हें बहुत सम्मान दिया था, लेकिन मुझे इसका पछतावा है कि वहां से इसके बदले कुछ नहीं किया गया। मुझे पाकिस्तान के लोगों से कोई शिकायत नहीं है।’

जावेद अख्तर ने आगे कहा है, ‘पाकिस्तान के बड़े कवियों ने लता मंगेशकर के लिए गाने लिखे हैं। वो 60-70 के दशक में भारत और पाकिस्तान की सबसे पॉपुलर सिंगर थीं, लेकिन आज तक पाकिस्तान में कभी उनकी एक भी परफॉर्मेंस नहीं हुई। मुझे पाकिस्तानी लोगों से शिकायत नहीं। वहां के लोग उन्हें पसंद करते थे, लेकिन उनका रास्ता रोका गया था। सिस्टम ने बाधा डाली, जो मैं कभी नहीं समझ सकता। ये जो एकतरफा ट्रैफिक है, कहीं न कहीं हम इससे थक चुके हैं कि ये बात तो ठीक नहीं है। तुम्हारी तरफ से तो हमें रिस्पॉन्स मिलता नहीं है। ये कब तक चलेगा।’

आगे उन्होंने कहा है, ‘दूसरा पॉइंट ऑफ व्यू भी वैलिड है। वो ये है कि अगर हम एक सॉलिड लॉजिक के साथ पाकिस्तानी कलाकारों को बैन करते हैं तो हम किसे खुश कर रहे हैं, आर्मी और कट्टरपंथियों को। वो भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऊंची दीवार बनाना चाहते हैं, जिससे पाकिस्तानी ये न देख सकें कि भारतीय लोगों के पास कितनी आजादी और विशेषाधिकारों हैं, जिसे वो एंजॉय करते हैं। वो दूरी चाहते हैं, यही उन पर शोभा देता है। जो हमारी मिलनसारिता है कि हमें पाकिस्तानी आर्टिस्ट के साथ काम करना है, ये उन पर शोभा ही नहीं देता। क्योंकि फिर वो आर्टिस्ट वापस जाकर पाकिस्तान में इंडियन सोसाइटी के बारे में बताते होंगे कि वो लोग तो बहुत खुश हैं। तो क्या हम उन्हें खुश कर रहे हैं, क्या हम उन्हें बैन करके उनकी मदद कर रहे हैं। हाल फिलहाल में जो हुआ है, उसके बाद तो ये टॉपिक ही नहीं होना चाहिए। उनके लिए कोई फ्रैंडली फीलिंग नहीं है। ये तो अब इसके बारे में सोचने का समय भी नहीं है।’

बताते चलें कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर पूरी तरह बैन लगा दिया है। यही वजह है कि फवाद खान की कमबैक फिल्म अबीर गुलाल अब भारत में रिलीज नहीं होगी। फिल्म फेडरेशन ने ये भी ऐलान किया है कि पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम करना अब देशद्रोह माना जाएगा।



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