रघुवंशी राजा का शनिदेव जी को शाप
पूर्वकाल में रघुवंश में उत्पन्न महाराजा हरिस्चन्द्र सत्य निष्ठ व् दानी स्वभाव के लिए जगत विख्यात थे I शनि की साड़ेसातीके प्रभाववश उन्होने न केवल अपने पुत्र व् पत्नी को बेच दिया था बल्कि स्वंय को भी डोम के हाथो बेच दिया था I
कथा ये कि जब राजा हरिश्चन्द्र पर शनि देव जी कि साड़ेसाती चढ़ी, तब राजा के सत्यव्रत को भंग करने लिए, मुनि विश्वमित्र ने शनि देव जी का आह्वान किया I मुनि राजा के सत्यव्रत से ईर्ष्या भी करते थे I
मुनि विश्वमित्र के कहने पर ही शनिदेव ने सर्प का रूप धारण क्र के राजा के पुत्र को डसा था I स्वयं राजा ने अपने आप को डोम के हाथों बेचकर मरघट की रखवाली की थी I रानी शैव्या जब अपने पुत्र को लेकर मरघट आयी, तब राजा ने उसे पहचान लिया, लेकिन उस समय वे डोम की सेवा में थे I अतः उन्होंने रानी शैव्या से मरघट क्र मांगा I रानी शैव्या के पास क्र देने के लिए कुछ नहीं था, तो उन्होंने अपनी साड़ी फाड़कर देनी चाही I तभी ब्राह्मण भेष में मुनि विश्वमित्र व् सर्प रुप में शनिदेव जी वहां प्रकट हो गए, फिर देखते ही देखते युवराज रोहताश्व भी जीवित हो गया Iमुनि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को सारा वृतांत बताया आप पर शनि साढ़ेसाती का प्रकोप था जो अब पूर्ण हो गया हे और आपकीपरीक्षा में मेरा सहयोग शनिदेव जी ने दिया है I पर जब राजा हरिस्चन्द्र को ये ज्ञात हहआ की शनि देव जी ही सर्प रूप धारण कर उनके पुत्र को डसा था तो उन्होने शनिदेव जी को श्राप दिया कि जो मनुष्य धर्म का आचरण करेगा व् प्रभु कि शरण में जीवन व्यतीत करेगा I आपकी क्रूर दृस्टि का प्रभाव उस पर नहीं पड़ेगा I
***ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्***