shiv chalisa

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११ शिव चालीसा- Shiv Chalisa ११

||दोहा||

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

चौपाई

जय गिरिजा पति दीन दयाला ।सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।छवि को देखि नाग मन मोहे ॥

मैना मातु की हवे दुलारी ।बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।या छवि को कहि जात न काऊ ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा ।तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।आय हरहु मम संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदा हीं ।जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।शारद नारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमः शिवाय ।सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

||दोहा||

नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौं चालीसा ।तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान ।अस्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण ॥

                                                       ११  ॐ नमः शिवाय ११  

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