What is the relation of Tula Daan with Lord Shanidev?
तुला दान और शनिदेव के बीच गहरा ज्योतिषीय और धार्मिक संबंध है। यह उपाय विशेष रूप से शनिदेव की कृपा प्राप्त करने और उनके अशुभ प्रभावों को शांत करने के लिए किया जाता है। तुला दान में “तुला” (तराजू) का उपयोग होता है, जो न्याय और संतुलन का प्रतीक है, और शनिदेव भी कर्म और न्याय के देवता माने जाते हैं।
शनिदेव और तुला दान का संबंध:
न्याय और संतुलन का प्रतीक:
शनिदेव कर्म के आधार पर फल देते हैं, और तुला दान यह संकेत करता है कि व्यक्ति संतुलन और न्याय को महत्व देता है। यह शनिदेव को प्रसन्न करने का प्रतीकात्मक तरीका है।शनि दोष का निवारण:
जब कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में होते हैं (जैसे साढ़े साती, ढैया, या शनि की महादशा), तो तुला दान का उपाय शनि के प्रभावों को कम करने के लिए किया जाता है।त्याग और सेवा का भाव:
शनिदेव को सेवा और दान प्रिय है। तुला दान में वस्तुओं को तौलकर दान करने का अर्थ है कि व्यक्ति अपने भौतिक सुख-साधनों को त्यागकर जरूरतमंदों की मदद कर रहा है, जिससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
तुला दान में क्या दान किया जाता है?
तुला दान में सामान्यतः निम्नलिखित वस्तुओं का दान किया जाता है:
- सरसों का तेल
- काला तिल
- काले चने
- काली उड़द की दाल
- लोहा या लोहे की वस्तुएं
- काले वस्त्र
- काले जूते
- कनक
- इत्यादि
इन वस्तुओं को एक तराजू में तौलकर अपने वजन के बराबर या इच्छानुसार दान किया जाता है।
तुला दान करने का शुभ समय:
- शनिवार: शनिदेव का दिन होने के कारण यह समय सबसे शुभ माना जाता है।
- शनि अमावस्या: इस दिन तुला दान करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
- शनि ग्रह की अशुभ दशा: शनि की साढ़े साती, ढैया, या महादशा के दौरान तुला दान करना लाभकारी होता है।
तुला दान के लाभ:
- शनि दोष का शमन:
शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। - कष्टों से मुक्ति:
जीवन में आने वाली बाधाएं और कठिनाइयां दूर होती हैं। - सुख-शांति और समृद्धि:
शनिदेव की कृपा से जीवन में शांति और समृद्धि आती है। - पुण्य अर्जन:
जरूरतमंदों की मदद से सकारात्मक ऊर्जा और पुण्य का अर्जन होता है।
तुला दान का उद्देश्य शनिदेव को प्रसन्न करना, अपने कर्मों में सुधार लाना और जीवन में संतुलन स्थापित करना है। इसे किसी योग्य पंडित या ज्योतिषी के मार्गदर्शन में करना सर्वोत्तम माना जाता है।
***नोट – वस्तुंओ का दान ग्रह दशा – अंतरदशा को दृस्टि में रख कर किया जाता जाता है I***
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शनिदेव जी की आरती
*** औम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात***