शनिदेव पर तेल चढ़ाने का रहस्य
एक बार हनुमान जी भगवान श्री राम की भक्ति में लीन थे और ये सर्वविदित है कि शनिदेव जी स्वभाव से उद्दंड थे तो उन्होने उछल-कूद मचाते हुए राम भक्त हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारने लगे I हनुमान जी ने भक्ति बीच में छोड़ कर शनिदेव जी को समझाते हुए कहा , “हे शनिदेव ! इस समय मैं अपने इष्ट देव कि आराधना कर रहा हूँ आप विघ्न न डालें I ” लेकिन शनिदेव जी पर हनुमान जी के समझाने का कोई असर नहीं हुआ और वे बोले,” हे वानर ! मैंने तो देवतांओ से सुन रखा है कि तुम बहुत बलवान हो, पर क्या मुझे देखते ही तुम्हारा बल क्षीण हो गया ? मुझे सूर्य पुत्र शनि कहते हैं मेरी दृस्टि पड़ते ही अच्छे-अच्चों का बल गायब हो जाता है I यदि तुम में बल है तो मुझसे युद्ध करो अन्यथा मेरे दास बन जाओ I ”
शनिदेव कि बात सुनकर हनुमान जी को क्रोध आ गया, उन्होंने क्रोधवश में शनिदेव जी को अपनी पूँछ में लपेटा और एक पर्वत से दूसरे पर्वत तक छलांग लगाने लगे I परिणामस्वरूप पत्थरों कि रगड़ से उनका सारा शरीर छील गया और वे लहूलुहान हो गए I
शरीर छिलने से पीड़ित शनि देव जी गिड़गिड़ाते हुए हनुमान जी से बोले, ” है हनुमान जी ! अब बस करो, मुझे अपने बंधन से मुक्त कर दो, आज से में आपकी सब बात मानूंगा I ”
तब हनुमान जी ने शनिदेव जी से वचन लिया कि जो भक्त मेरी आराधना करेगा, उसे तुम कभी पीड़ित नहीं करोगे I तबसे जो भी कोई शनि कि दशा में हनुमान जी की आराधना करता है उसे शनिदेव जी पूरी कृपा रहती है I
शनिदेव जी को तेल भी इसलिए चढ़ाया जाता है कि शनि कि पीड़ा दूर हो और वे प्रसन्न होकर सहायक बनें I शनि के प्रकोप से बचने के नित्य ही हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानष्टक का पाठ करना चाहिए I
*** ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय***