नल-दमयंती पर शनि देव जी का प्रकोप
कहते हैं कि महाराजा नल पराक्रमी, सद्गुणी, यशस्वी, प्रजापालक, धर्मज्ञ होने के साथ-साथ रूप वान भी थे I उनके छोटे भाई का नाम श्रीपुष्कर था I रानी दमयंती भी बहुत रूपवती थी उनके रूप सौंदर्य पर देवता भी मोहित थे और किसी तरह से उनको पाने को लालायित रहते थे I
एक बार राजा नल ने कुछ हंसों को क्षमा दान दिया था, इससे वो राजा से प्रसन्न थे और उनका गुणगान किया करते थे I एक बार राजकुमारी दमयंती जब राजमहल कि अट्लिका पर विचरण कर रही थी, तभी वे हंस महल की अट्टालिका पर उतरे और उन्होंने राजा का गुणगान करते हुए दमयंती को राजा नल से विवाह करने को कहा I
हंस तो उड़ कर चले गए परन्तु राजकुमारी अपनी शय्या पर लेटकर सोचने लगी कि जिसकी प्रसन्नसा पशु – पक्षी भी करते हो , वह अवश्य ही रूपवान व् गुणवान होगा I फिर उसने नल को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया I यंदमती का जब स्वयंवर समारोह हुआ तब देव गन भी वहां उपस्थित थे I परन्तु शनिदेव जी नहीं आये और स्वयंवर में यंदमती ने राजा नल का वरण किया I जब शनिदेव जी को इस बात की भनक लगी तो वो अति क्रोधित हुए और उन्होंने नल- दमयंती को दंडित करने का निर्णय ले लिया I
उन्होंने राजा के छोटे भाई श्रीपुष्कर की बुद्धि पलट दी , फलस्वरूप श्रीपुष्कर ने नल को धयूत क्रीड़ा के लिए प्रेरित किया I शनि के प्रभाव से नम ध्यूत क्रीड़ा में हार गए और उनका सारा राज-पाट श्रीपुष्कर ने छीन लिया और राजा को नल को देश से निकाल दिया I
नल-दमयंती विवश होकर वन-वन भटकने लगे , वे जिन वन्यजीवों को मारकर उदरपूर्ति के लिए भूनने लगते, वे सभी जीवित होकर भाग छूटते I ये सब शनिदेव जी की क्रूर दृस्टि का ही प्रभाव था I
एक दिन शनिदेव जी राज की मति भर्मित कर दी राज नल अपनी रानी दमयंती को वन में अकेले छोड़कर कहीं चले गए I रानी दमयंती किसी तरह भटकते भटकते अपने पिता के राज्य में पहुंची और उसने अपने पिता को सारा वृतांत सुनाया I दमयंती के पिता ने अपने राज्य के ज्योतिषीयों को बुलाकर उनसे इस बात का पता लगाने को कहा किर राजा नल व् उनकी पुत्री दमयंती के साथ ऐसा क्यों हो रहा है I
राज्य के ज्योतिषियो ने बताया कि ये सब शनिदेव जी का प्रकोप है और उन्होंने शनिदेव जी प्रसन्न करने के लिए रुद्रावतार हनुमान जी कि आराधना करने का परामर्श दिया I तब रानी दमयंती ने हनुमान जी कि आराधना कि जिससे शनिदेव प्रसन्न हो गए और उन्होंने राजा नल को उसका खोया राज्य व् वैभव फिर से दे दिया I
***ओम नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसहांरणाय सर्वरोगाय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।***